पाखंड को त्यागने का संकल्प

फर्रुखाबाद। (एफबीडी न्यूज़) आर्य समाज के 150 वें स्थापना वर्ष पर वैदिक धर्म तथा वेदों के प्रचार-प्रसार हेतु आर्य समाज कमालगंज के तत्वावधान में एक महीने तक चलने वाला ‘श्रावणी वेद प्रचार अभियान’ आज से प्रारंभ हुआ। इस अवसर पर खुदागंज के निकट गांव रम्पुरा में प्रातःकाल यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें आर्य समाज के विद्वानों द्वारा यज्ञ में आहुतियां डलवाकर ग्रामवासियों से समाज मे व्याप्त पाखण्ड, नशाखोरी, छुआ-छूत आदि कुरीतियों को त्यागने का संकल्प कराकर सत्संग की महिमा व उसके वास्तविक स्वरूप को समझाया गया।

आचार्य ओमदेव ने श्रावण मास के महत्व को बताते हुए कहा कि यह माह वेद चर्चा सुनने व परमेश्वर की आराधना उपासना करने का माह है ईश्वर की भक्ति से ही जीव सांसारिक बंधनों से छूट सकता है। रमेश आर्य ने वैदिक सत्संग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वैदिक सत्संग भारतीय संस्कृति की एक महान परंपरा है, जो व्यक्ति को आत्मज्ञान, सदाचार और आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करती है। “सत्संग” का अर्थ है – ‘सत्’ अर्थात् सत्य या श्रेष्ठ और ‘संग’ अर्थात् संगति। वैदिक सत्संग का आशय उन विचारों, व्यक्तियों और शास्त्रों की संगति से है जो वेदों के ज्ञान से ओतप्रोत हों और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें।

आचार्य सतीश देव ने कहा कि वेदों को सनातन ज्ञान का मूल स्रोत माना जाता है। वैदिक सत्संग में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के मंत्रों का पाठ, अर्थ का चिंतन, और उन पर चर्चा की जाती है। यह सत्संग केवल शाब्दिक जानकारी नहीं देता, बल्कि व्यक्ति के अंतर्मन को शुद्ध करता है और जीवन जीने की दिशा देता है। घनश्याम आर्य ने कहा कि वैदिक सत्संग में ऋषियों द्वारा बताए गए यम-नियम, सत्य, अहिंसा, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान जैसे गुणों को जीवन में उतारने की प्रेरणा दी जाती है। यह सत्संग किसी जाति, धर्म या वर्ग से बंधा नहीं होता – यह सार्वभौमिक होता है, क्योंकि वेद मानव मात्र के कल्याण के लिए हैं।

समाज में नैतिकता, करुणा और समरसता की भावना विकसित करने में वैदिक सत्संग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वर्तमान युग में जहाँ भौतिकता हावी है, वैदिक सत्संग एक प्रकाशपुंज के समान है, जो आत्मा को शांति, स्थिरता और सच्चे आनंद की अनुभूति कराता है। इसलिए, वैदिक सत्संग न केवल धार्मिक गतिविधि है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना है। जो मानव जीवन को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करती है। कार्यक्रम के संयोजक आचार्य संदीप आर्य ने कहा कि भारत की मूल आत्मा गांवो में निवास करती है यहां की अधिकांश आबादी प्रकृति के अति निकट रहकर उसके संरक्षण का कार्य करती है।

परन्तु आज आधुनिकता की दूषित वायु ग्रामीण परिवेश को भी प्रभावित कर रही है। आयोजन का उद्देश्य ग्रामीण जनमानस में वैदिक संस्कृति सामाजिक मूल्यों व हमारी प्राचीन परंपराओं के प्रति आस्था जगाना है। आर्य समाज के कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर जनजागरण का कार्य कर रहे हैं। कार्यक्रम में आचार्य राम रहीस हुकुम देव शास्त्री, सुरेश बाबा जी,जगदीश आर्य अमरसिंह आर्य, एड. विजेंद्र सिंह एड. काशीराम आर्य,राजेन्द्र सिंह आर्य,खुशीराम आर्य,मोहरपाल,श्याम सिंह,सुरभि,प्रिया आदि उपस्थित रहे।

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