आर्य समाज ने महर्षि वाल्मीकि को याद किया

फर्रुखाबाद। (एफबीडी न्यूज) जयंती पर गोष्टी करके आर्य समाज ने महर्षि वाल्मीकि को याद किया है। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर आर्य समाज कमालगंज के तत्वावधान में खुदागंज क्षेत्र के रम्पुरा में विद्वत गोष्ठी एवं यज्ञ का आयोजन किया गया। जिसमे आर्य समाज के वक्ताओं ने महर्षि वाल्मीकि के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन दर्शन को अपनाने पर जोर दिया। सभी श्रद्धालुजनों ने वैदिक मंत्रों से यज्ञ में आहुतियां देकर लोक कल्याण की कामना की।

वैदिक विद्वान आचार्य संदीप आर्य ने यज्ञ सम्पन्न कराया उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि महर्षि वाल्मीकि जी भारतीय संस्कृति के आदिकवि और महान वैदिक ऋषि थे। उनका जीवन सत्य, तपस्या और ज्ञान का प्रतीक है। वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की, जिसे आदिकाव्य कहा जाता है। यह ग्रंथ केवल कथा नहीं, बल्कि वैदिक आदर्शों का जीवन्त स्वरूप है। इसमें सत्य, धर्म, मर्यादा, त्याग, और भक्ति जैसे गुणों का सुंदर निरूपण मिलता है। श्रीराम के जीवन के माध्यम से उन्होंने मानवता को यह सिखाया कि धर्म पालन और सत्य मार्ग पर चलना ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

वैदिक दृष्टि से वाल्मीकि जी का जीवन “सत्यं वद, धर्मं चर” के सिद्धांत का अनुपालन है। वे एक आचार्य के रूप में लव और कुश को वेद, नीति और धर्म की शिक्षा देते थे। उनका जीवन यह प्रमाणित करता है कि कोई भी व्यक्ति साधना और ज्ञान के बल से अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ सकता है। अतः महर्षि वाल्मीकि जी का जीवन हमें वैदिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह सिखाता है कि सत्य, तप और भक्ति से ही जीवन का उत्थान संभव है। उन्होंने कहा कि आज का समाज जातिवाद की समस्या से ग्रस्त है।

जाति के आधार पर भेदभाव, ऊँच-नीच का भाव और सामाजिक असमानता हमारे देश के विकास में बाधा बन रहे हैं। परंतु यदि हम महर्षि वाल्मीकि के जीवन और विचारों को अपनाएँ, तो इस समस्या का समाधान संभव है। महर्षि वाल्मीकि जी ने अपने जीवन से सिद्ध किया कि मनुष्य की महानता उसकी कर्मशीलता, ज्ञान और साधना में है, न कि उसकी जन्मजात जाति में। वे स्वयं वनवासी पृष्ठभूमि से थे, परंतु अपने तप, भक्ति और ज्ञान के बल से महर्षि कहलाए। उन्होंने रामायण जैसा अमर ग्रंथ रचकर यह प्रमाणित किया कि हर व्यक्ति में ऋषित्व जागृत हो सकता है।

उनकी शिक्षा वैदिक सिद्धांत “मनुष्य कर्म से महान होता है, न कि जन्म से” को जीवंत करती है। रामायण में भी उन्होंने सभी वर्गों, जातियों और जीवों के प्रति समान दृष्टि रखी आर्य समाज भी इसी समानता और मानवता का सर्वोच्च संदेश है। यदि आज का समाज वाल्मीकि जी की इस भावना को अपनाए कि सभी मनुष्य एक ही परमात्मा की संतान हैं तो जाति, ऊँच-नीच, भेदभाव जैसे विकार स्वतः समाप्त हो जायेंगे। रमेश आर्य ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि जी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा धर्म मानवता है।

उनके आदर्शों को अपनाकर ही हम जातिवाद से मुक्त एक समान, न्यायपूर्ण और वैदिक समाज की स्थापना कर सकते हैं। कार्यक्रम में अमर सिंह आर्य, मोहरपाल सिंह,पियूष,रामौतार वर्मा,रामपाल सिंह, अनुराग,प्रियंका आदि उपस्थित रहे।

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